आचार्य गुरूदेव तो साधना की पर्याय बन गए है अपने सम्पूर्ण जीवन के 53 वर्ष

आचार्य गुरूदेव तो साधना की पर्याय बन गए है अपने सम्पूर्ण जीवन के 53 वर्ष



आचार्य गुरूदेव तो साधना की पर्याय बन गए है अपने सम्पूर्ण जीवन के 53 वर्ष साधना में लगाते हुए उन्होंने जैन धर्म का जो मान बढ़ाया है उसे शब्दो मे कहा नही जा सकता ,,,, में तो निर्बुद्धि हू कुछ बड़े बड़े साहित्यकारों ने भी प्रयास किया तब भी वे उनके जीवन और साधना के बहुत सारे पहलुओं से अनछुए ही रहे,,
               अब पुनः वही अविस्मरणीय दिन आ गया है इतिफाक देखिये 25 तारीख दिन गुरुवार यानि गुरु का वार,, अब यह हमारा नैतिक कर्तव्य बनता है कि जिस गुरु को हम लोकप्रिय संत मानते है उनके दीक्षांत समारोह को साधना दिवस के रूप में मनाए जैसा कि पूज्य निर्यापक संत मुनि श्री सुधासागर जी महाराज ने भी कहा है और यही एक संत के प्रति हमारी विनय होनी चाहिये कि जिस रास्ते वे बड़ रहे है हमारा भी अनुसरण होना चाहिये,,,
                मुझे लगता है जैसा स्लोगन में लिखा हुआ पड़ते है चरण नही आचरण छुए,,, तो अब वह समय आ गया है जब हमें इस बात के लिये वचन ब्रद्ध हों जाना चाहिये कि हम तीर्थंकरों की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले श्रेष्ठ संत परम पूज्य आचार्य गुरूदेव विद्यासागर जी महाराज के साक्षात स्वरूप को अपना आदर्श मानते हुए किसी साधक की तरह अपने शेष जीवन को जीने का प्रयास करेंगे,
             मुझे लगता है पूर्व के वर्षों में कई ऐसे प्रसंग आये होंगे जो हमारी नजरो में नही आये हैं और संभव है कही न कही सुरक्षित भी होंगे,,, तो अपने दादा दादी के सामने बैठ कर आचार्य महाराज के जीवन ब्रतान्त को सुनने का प्रयास कीजिये सम्भव है कुछ ऐसा अविस्मरणीय सुनने मिल जाये जिसे सुनकर हम दांतो तले उंगलियां दबाने को मजबूर हो जाये या फिर जो लोग साधना से प्रगट होने वाले अतिशयो को मात्र अतिश्योक्ति कहते है वे भी इस बात को मानने पर विवश हो जाये कि साधक के रूप में गुरूदेव हमारे बीच मे हैं उन्ही के पुण्य प्रताप से ही सब कुछ हो रहा है तभी तो बनाने वालों ने भजन बना दिया
गुरु आपकी कृपा से सब काम हो रहा है
करते हो आप गुरूवर मेरा नाम हो रहा है

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